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भाग - 2

चहल पहल भरे बाजार से किसी संकरी गली के अंदर जाना मुझे ऐसे लग रहा था जैसे की मैं किसी पाताल में जा रहा हूँ।

थोड़ी ही दूर में एक 3 मंजिला चाल थी जंहा आकर वो संकरी गली खत्म होती थी। उस चाल की रंगत भी उस मार्किट की तरह ही थी। जगमगाते हुए रंगीन लाइट उस शाम की सोभा बड़ा रहे थे, हाथों में हरीभरी चूड़ियां पहने महिलाएं जो सज धज कर खड़ी थी उनके मुह से निकलने वाली गालियाँ और प्यार भरे शब्द आपस में ऐसे मिल रहे थे की पता ही नही चलते की वो प्यार से बुला रहे हैं या की धुत्कार रहे हैं।

मैं अपना छोटा सा बेग उठाये अजीब निगाहों से उनको देखता हुआ बस अंकल के पीछे चल रहा था,अंकल आखिरकार एक कमरे के पास पहुचे जो की बड़े से बरामदे के आखरी छोर पर था,

"अरे चम्पा बाई ,कहा हो "

कमरे के अंदर जाने पर मेरी आंखे खुली की खुली रह गई।ये गरीबों की सी बस्ती में ऐसा वैभव होगा मैंने सोचा नही था दुसरों के लिए तो नही पता मेरे लिए तो ये वैभव ही था।बड़ा सा सोफा कमरे में रखा था पास ही कोई 4-5 गुंडे किस्म के लोग खड़े थे जिनकी भुजाए मेरे जांघो जितनी होगी बड़ा सा कमरा था और कमरे के बीच में सोफे में एक औरत बैठी थी जिसका मुह पान से लाल हो रखा था।

बड़े डीलडौल वाली ये महिला देखने में ही बड़ी खतरनाक लग रही थी मेरे माथे पर आया पसीना मेरे डर को साफ तौर से जाहिर कर रहा था।

“अरे आओ आओ बैठो बनवारी “

अंकल का नाम बनवारी था ,जो भी हो मुझे एक कमरा चाहिए बस ,

“देखिए आपके लिए क्या लाया हु, पढ़ा लिखा लवंडा है।कमरा चाहिए इसे “

चम्पा मुझे ऊपर से नीचे तक देखने लगी

“क्यो रे लवंडे कितना पढ़ा है”

“जी बी ई कर रहा हूँ ”

“वो क्या होता है”

“जी इंजीनियरिंग कर रहा हूँ ”

“इंजीनियर हो ”

“जी पढ़ाई कर रहा हूँ , जिसे पढ़कर इंजीनियर बनूंगा ”

वो मुझे अजीब निगाहों से देखती है , मेरे दिल की धड़कने बढ़ रही थी,वो बनवारी की तरफ देखती है ,

“ये हमारे लिए काम करेगा ”

“बिल्कुल करेगा ”

“अरे तुम्हे कम्प्यूटर चलाना आता है क्या ”

“जी आता है ”

मेरे स्कूल में हमे कम्प्यूर का ज्ञान सरकार के द्वारा मिला था मेरा इंटरेस्ट उसमे इतना हुआ की मैं कंप्यूटर साइंस में ही इंजीनियरिंग करने की सोच ली …

“कितना आता है ,हिसाब कर लोगे ”

“जी मैं तो उसी में इंजीनियरिंग कर रहा हूँ ”

“अरे हमे उससे कोई मतलब नही है की तुम किसमे क्या कर रहे हो हिसाब कर लोगे की नही ये बताओ ,साला एक झंझट दे दिया है शकील भाई ने हमे अब ससुरी रंडीखाने में भी कंप्यूटर लाना पड़ेगा ”

मैंने दिल से शकील भाई को दुवा दी मुझे नही पता था की वो कौन है पर जो भी है मैं बहुत खुश हुआ ।

कोई फालतू का काम नही करना पड़ेगा और रहने को कमरा भी मिल जाएगा,

“जी बिल्कुल आता है ,सब कर लूंगा आप बताइये क्या करना है ,” मेरे चहरे पर खुशी और आत्मविस्वास आ गया था । जिन्हें कुछ नही पता हो उनके आगे तो मैं शेर बन ही सकता था।

“ह्म्म्म ठीक है ,यहां से क्या क्या पैसा आता है और जाता है उसका हिसाब रखना पड़ेगा ,इसके लिए तुझे 2 हजार दूंगी और रहने को मकान चलेगा और मकान नही चाहिए तो 2.5 हजार मिलेगा । ”

मेरे दिमाग में आया की साला ये मकान सिर्फ 500 में दे रही है ,पूरे शहर में सबसे सस्ता …

“असल में क्या है ना की तू यहां रहेगा तो मैं जब चाहू तुझे बुला सकती हूँ ना इसलिए ज्यादा पैसा दूंगी बाहर रहेगा तो टाइम से आएगा टाइम से जाएगा तो मेरे से नही बनेगा ”

“जी चलेगा ,यही रह लूंगा ”

मेरी तो बांछे ही खिल गई ,खाने में मेरे ज्यादा खर्च नही थे ,मैं फिर भी 1000 रुपये बचा सकता था, मेरे दिमाग में माँ के लिए नई साड़ी घूम गई, बापू के लिए भी कुछ ले पाऊंगा अरे वाह …

मैं खुस हो रहा था।

‘ठीक है इसे काजल का कमरा दिखा दे ,वही रहेगा ये ”

अब मेरी संट हुई , मैं काजल के साथ रहूँगा मतलब ...लेकिन मैं कुछ बोला नही ,

“सुन कल सुबेरे आ जाना क्या लगता है कंप्यूटर के लिए बता देना मंगवा लूंगी ”

“आपको काम क्या क्या करना है ”

“अरे बताई तो ना ”

मैं सोच में पड़ गया ,फिर मेरे दिमाग में एक शैतानी आई

“कितने लोग चलाएंगे ”

“अब इस काम के लिए क्या मैं ऑफिस खोलू तू ही चलाएगा तुझे क्यो रखा है ”

“ओहह ,तो एक काम क्यो नही करती डेक्सटॉप की जगह पर लैपटॉप ले लेते है ,बजट कितना है ”

“मतलब “

“मतलब की कितना खर्च कर सकते है”

“30-40 हजार इससे ज्यादा नही “मेरे मन में लड्डू फूटे साला जिसे मैं सपने में देखता था शायद वो सच हो जाएगा ,खुद का लेपटॉप

“हाँ हो जायेगा ,आराम से हो जाएगा ,एक लेपटॉप ले लेंगे और एक प्रिंटर आपके पैसे भी बच जायेगें ,आप बोलो तो यहाँ वाईफाई का राउटर भी लगा लेते है,कोई सस्ते वाला काम चल जाएगा ”।

वो मुझे ऐसे सुन रही थी जैसे कोई दूसरी भाषा में कुछ कह दिया हो ।

“कितने में हो जाएगा ”

“आपके बजट में हो जायेगा पैसे भी बच जायँगे हाँ वाईफाई के लिए महीने में बिल देना होगा”

“कितना ”

“यही कोई 500 ”

“ह्म्म्म रुक शकील भाई से बात करती हूँ “वो फोन घुमाई और लगभग 5 मिनट तक बात करते रही उन्हेंने मेरे बारे में भी सब कुछ बताया और फोन मुझे दिया , शकील चम्पा से कही ज्यादा जानकर निकला उसने मुझे हर चीज के बारे में पूछा और मुझसे खुश भी हो गया। अंत में वो बस इतना बोला की तू मेरे बहुत काम आएगा और चम्पा से बात करने लगा ,चम्पा ने मेरी हर बात मान ली थी ,मैं बहुत खुश था मुझे हमेशा से ये सब चाहिए था लेकिन मैं इनके बस सपने ही देख सकता था लेकिन अब मरे पास ये सब होगा। मैं अब अपने प्रोजेक्ट अपने लेपटॉप में बना पाऊंगा और प्रिंट करा पाऊंगा ………..

अब बात थी मेरे नई रूममेट काजल की ,चलो उसे भी देखते है…..मैं एक बॉडी बिल्डर के पीछे चलने लगा …..

कहानी जारी है....

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