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भाग - 1

शहर जितना बड़ा होता है वहां के लोगो का दिल उतना ही छोटा,ये जुमला मैंने शायद किसी फ़िल्म से सुना था,लेकिन जब मुझे सचमे शहर आना पड़ा तो ये बिल्कुल सत्य लगने लगा,मैं यहां पढ़ने के लिए आया था।

मेरा एडमिशन एक इंजीनियरिंग कॉलेज में हुआ था। मैं अपने गांव का एकमात्र इंजीनियर बनने जा रहा था और इस उपलब्धि को पाने के लिए मैंने बहुत संघर्ष किया था।एडमिशन तो मुझे मिल गया लेकिन रहने की जगह नही मिल पाई ,होस्टल फूल हो चुके थे,और कई धर्मशाला से निकाला जा चुका था।

मैं 6 महीने से यहां वहां भटक रहा था।

मेरा कॉलेज एक सरकारी कॉलेज था,और यहां जो भी मेरे दोस्त बने वो मेरे ही तरह गांव से आये हुए लड़के थे,शहर के लड़के तो हमे भाव भी नही देते थे। और लडकिया….

हमारे जैसे लोगो को वो अपने मुह नही लगना चाहती थी।यही बात एक लड़की ने मुझसे कही थी जब मैंने उसके बाजू में बैठने की हिमाकत कर दी ।

खैर मेरे दोस्तो के पास तो खुद का कोई जुगाड़ नही था ।जैसे तैसे सरकारी होस्टल में रह रहे थे,वहां उनकी वो रैगिंग हुआ करती थी जिसे सोचकर रूह कांप जाय लेकिन इसके अलावा उन बेचारों के पास कोई चारा भी नही था।

ऐसे मैंने भी वहां रहने की कोशिशें की लेकिन वार्डन ने मुझे वहां से भी भगा दिया, जैसे तैसे 6 महीने तो गुजर गए लेकिन अब समय था मेरे पहले सेमेस्टर के एग्जाम का और मेरे पास तो रहने को भी जगह नही थी।

मा बाप के पास इतना पैसा भी नही था की वो मुझे वो सुविधा दे सके की मैं किसी रूम किराए पर लेकर रह सकूँ।

स्कॉलरशिप भी अभी मिली नही थी ,और इतनी मिलने वाली भी नही थी की कुछ जुगाड़ हो सके,पार्ट टाइम एक जॉब कर रखा था,उससे ही मेरे कपड़े और खाने पीने का जुगाड़ हो जाता था,मेरे पास कुछ ज्यादा समान नही थे।

पुस्तके लाइब्रेरी से ही ले आता कुछ कापियां जिनमे मेरे नोट्स थे और 2 जोड़े कपड़े जिसे बदल बदल कर पहनता था। उस दिन जब धर्मशाला से निकाला गया तो मैं लगभग टूट गया,वहां के सभी धर्मशाला वाले मुझे पहचानने लगे थे। कही कोई जगह नही बची थी ,साला हमारा गांव ही अच्छा था वहां आप कही भी रहो कोई टोकने वाला नही होता था और एक ये शहर था जंहा बस स्टेशन में भी पुलिश वाले बैठने नही देते, मैं अंदर से टूटा हुआ अपना बेग लेकर कॉलेज पहुचा पता चला की एक दिन पहले ही फ्रेशर पार्टी की गई थी ,मुझे इन सबसे क्या मतलब था,मेरे एक दोस्त ने मेरी स्तिथि देखी और हाथ में मेरा बेग देखा वो समझ गया की इसे फिर से निकाल दिया गया है।

एक दो दिन की बात हो तो मैं होस्टल में उसके साथ ही शिफ्ट हो जाता लेकिन कुछ ही दिनों में एग्जाम थे और मुझे कोई अच्छा सा बसेरा चाहिए था जिसमे कम से कम कुछ दिन मैं टिक सकू…

वो मुझे चाय पिलाने ले गया उसका नाम प्यारे था,

“यार राहुल कल पार्टी में क्यो नही आया ,साले सीनियरों ने जमकर शराब पिलाई पता है…”

मैं चाय की एक सिप पीता हुआ उसे देखने लगा,और वो मेरी हालात समझ चुका था,

“फिर से बेघर ???”

“हा यार ,पता नही एग्जाम कैसे जाएंगे कॉलेज के कारण कोई नॉकरी भी नही कर पता ,पढ़ाई करू या नॉकरी समझ नही आता कोई जुगाड़ भी नही हो पा रहा है ,साला मेरा सेठ भी कुछ देने को तैयार नही कहता है की महीने के आखिर में पैसे लेना,जो बचे पैसे है उससे कोई कमरा ले लू तो खाऊंगा क्या समझ नही आ रहा ….”

मैं जानता था की प्यारे भी इसमें कुछ नही कर सकता पर उसके अलावा मैं बताता भी किसे ,तभी सीनियर का एक ग्रुप वहाँ आया ,और मुझे देखकर वो गुस्से में आ गए ,

“साले कल क्यो नही आया ,हमेशा सीनियरो से भागता है बहुत होशियार समझता है अपने को ….”

एक तेज झापड़ ने मेरा गाल लाल कर दिया था।

और मेरे सहनशीलता की सिमा टूट गई मैं जोरो से रोने लगा इतने जोरो से की सीनियर्स की भी हालत खराब हो गई । मैं ऐसे रो रहा था जैसे की मेरा दुनिया में कोई हो ही ना ,और अभी के परिपेक्ष में ये बात सही भी थी तभी उनमे से एक सीनियर आगे आया उन्हें हम बहुत मानते थे,असल में वो भी हमारी तरह गाँव से और एक अत्यंत गरीब घर से आये थे ,और कॉलेज में टॉप करने के कारण उन्हें थोड़ा सम्मान मिल जाया करता था,उनका नाम संजय था

“तुम लोग जाओ यहां से मैं इसे समझाता हूँ ,”

वो मेरे कंधे में हाथ रखकर मुझे सांत्वना देने के भाव से बोले

“क्या हुआ राहुल ,लगता है की तू बहुत बड़ी परेशानी में है।”

वो मेरे हालात समझते और जानते थे मैंने उन्हें अपने कंडीशन के बारे में बताया  इसका इलाज तो उनके पास भी नही था,लेकिन उसी चाय की टापरी में खड़े एक अंकल जो की हमारी बात ध्यान से सुन रहे थे अचानक हमारे पास आ गए ,

“रूम चाहिए “

“जी अंकल लेकिन पैसों की समस्या है थोड़ी “

“एक काम हो सकता है,मैं रूम दिलवा दूंगा बिना पैसों के खाने का पैसा देना होगा,और साथ में कुछ काम करने होंगे चलेगा “

मुझे लगा की ये आदमी जैसे मेरे लिए भगवान बन कर आया हो ,

“बिल्कुल अंकल चलेगा चलेगा “

“लेकिन एक और समस्या है,जिस जगह तुझे ले जा रहा हु वो सही जगह नही है “मेरे दोनो शुभचिंतकों ने अंकल की ओर प्रश्नवाचक नजर से देखा लेकिन मैं अभी भी उन्हें अभिभूत दृष्टि से देख रहा था,

“अंकल जहन्नुम में भी रहने को बोलोगे रह जाऊंगा “

अंकल के चहरे में एक मुस्कान खिल गई जैसे उन्हें कोई बड़े काम की चीज मिल गई हो ,ठीक है चल मेरे साथ ,

“ऐसे कौन सी जगह है अंकल “

मेरे सीनियर ने स्वाभाविक जिज्ञासा से पूछ लिया

“****मार्किट का रंडीखाना “

हम सभी स्तब्ध थे लेकिन कोई कुछ नही बोल पाया मजबूरी ऐसी थी की हम कुछ बोलने के लायक भी नही थे…..

कहानी जारी है....

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